इंडियन एग्जेक्युटिव्स के लिए छंटनी अब दाग नहीं

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सौम्या भट्टाचार्य
नई दिल्ली।।
जब 2009 में एक इंश्योरेंस कंपनी के सेल्स प्रफेशनल अजय (नाम बदला हुआ) की छंटनी हुई थी, तो वह सदमे में थे। उन दिनों को याद करते हुए वह कहते हैं, 'यह काफी तनावपूर्ण था.. मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि मेरे साथ ऐसा हो सकता है।' कुछ महीने पहले एक बार फिर उनके साथ ऐसा हुआ। हालांकि, चार साल बाद उनका जवाब काफी अलग है। उन्होंने कहा, 'अब यह बुरी खबर नहीं है। उस वक्त मुझे भरोसा नहीं था कि मुझे फिर से जॉब मिलेगी। इस वक्त मुझे पूरा यकीन है कि दूसरी नौकरी मिल जाएगी।'

अजय देश के एग्जेक्युटिव जॉब कल्चर में आए अहम बदलाव की मिसाल हैं। न तो एग्जेक्युटिव अब छंटनी को बदनुमा दाग की तरह लेते हैं और न ही एंप्लॉयर्स। स्लोडाउन के चलते कंपनियों के छंटनी अभियान के बाद इंडिया इंक के एंप्लॉयीज अब इसे अपनी नाकामी नहीं मान रहे। आदित्य बिड़ला ग्रुप में कार्बन ब्लैक बिजनस के ग्लोबल एचआर और सीईओ एस मिश्रा ने बताया, 'एक जॉब के चले जाने का मतलब यह नहीं है कि आप काम करने के लायक नहीं है। असुरक्षा अगले जॉब को लेकर नहीं होती है। वह इस बात से होती है कि अगला ऑफर कितना अच्छा होगा।

इकनॉमिक टाइम्स ने 'छंटनी हो गई, लेकिन मैं ठीक हूं' वाले इस ट्रेंड की वजहों की पड़ताल की है। इस बारे में हमने कुछ एंप्लॉयर्स, एचआर हेड और एग्जेक्युटिव्स से बात की। एचसीएल टेक्नॉलजीज के चीफ एचआर ऑफिसर पृथ्वी शेरगिल के मुताबिक, बाजार से किसी खास स्किल की मांग खत्म होने से बहुत अहम जॉब भी पुरानी पड़ सकती है। एचआर प्रोफेशनल्स के मुताबिक, एंप्लॉयीज बाजार के इस ट्रेंड से परिचित हो रहे हैं। दूसरी तरह, मिश्रा का मानना है कि कुछ प्रोफेशनल्स इसके लिए 6 महीने का ब्रेक ले रहे हैं कि उन्हें आगे क्या करना है। वहीं, मिडल मैनेजरों के रवैये में भी लगातार बदलाव आ रहा है। ऐसे में एंप्लॉयमेंट की हाई वैल्यू गिर जाती है। एचआर एक्सपर्ट्स के मुताबिक, पहले की मोटी सैलरी से भी नई जॉब तलाशने में काफी मदद मिलती है। ग्लोबलाइजेशन के चलते भारतीय एग्जेक्युटिव्स को भी आज पश्चिमी देशों के ट्रेंड के बारे में पता है। वहां छंटनी बाजार में उतार-चढ़ाव का हिस्सा मानी जाती है। इसे किसी शख्स की निजी नाकामी नहीं माना जाता।