प्रेम नच जाई तेथें,
जिवासी जीव न जडे जेथें ।

अनुसरतांना जडतें नातें;
जीवा जीव एक कार्य भेटवितें ॥
 
 
गीत - कृष्णाजी प्रभाकर खाडिलकर
संगीत - भास्करबुवा बखले
स्वर - बालगंधर्व
नाटक - संगीत स्वयंवर (१९१६)
राग - बागेश्री (मूळ संहिता)
ताल - त्रिताल
चाल - ’कोन गत भई’
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